Part 2: Ultimate Wisdom behind the Pandemic: Shaikh Eshref Efendi’s message to Indian community रहमत और दया
Word For Peace
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मुस्लिम हैं, यहूदी हैं, ईसाई हैं, हिंदू या बौद्ध हैं , ईश्वर में विश्वास करने वाले हैं या नास्तिक हैं, हर कोई अब एक समान है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या मानते हैं, क्योंकि हर कोई समान रूप से कोरेंटाइन में है।
तो आखिर क्यों? उसके पीछे क्या हिकमत है?
यह हमारे लिए अपने बौद्धिकता में आने का आखिरी मौका हो सकता है।
अभी हम छवियों या चित्रों से विचलित नहीं हो रहे हैं लेकिन हम बंद हैं और हम काम पर नहीं जा सकते हैं, या हम जहां भी जाते थे वहां नहीं जा सकते हैं लेकिन अभी भी हमारे पास वक्त है और हमें इस वक्त का उपयोग रूहानियत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए करना चाहिए।
आज आदम की औलाद कोरेंटाइन में नहीं, बल्कि एक रूहानी तबियत में हैं और आपको यह सोचना चाहिए कि हम किस तरह आध्यात्मिक बन सकते हैं| एक खलवत या रियाज़त में हम ही हैं उसके बारे में सोचो, यह वास्तव में एक रूहानी वापसी है।
हमारा ख़ुदा और परमेश्वर हमें मौका देता है शायद उसकी बातों को सुनने और उसके मार्गदर्शन पर चलने का, हमारी ईमानदारी में मज़बूत बनने और उसके साथ जीने-मरने का आखिरी मौका।
अब समय आ गया है कि मुसलमान अपने मज़हब को गम्भीरता से लें और अपने ईश्वर
को खुश करने की कोशिश करें।दूसरे धर्मों को मानने वाले तथा नास्तिकों को चाहिए कि और एक बार फिर से विचार करें और ईश्वर तक पहुंचने का सही रास्ता तलाश करें।
सिर्फ ये कहना कि हम मुसलमान हैं काफी नहीं, बल्कि अब हमें एक अच्छा मुसलमान बनकर पूरी दुनिया को दिखाना होगा। अपनी इबादत को सही ढंग से अदा करके, अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा सुलूक करके तथा दूसरों से प्रेम करके। ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे उत्तम और सरल उपाय यही है।
मैंने अखबार में एक लेख पढ़ा था जो औस्ट्रीया के एक मुसलमान ने लिखा था जिसमें वह कहता है कि “मेरी इस्लाम में कुछ ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी या यूँ कहिए कि काम की वजह से मैं कभी समय ही नहीं निकाल पाया। लेकिन इस भयानक बिमारी के चलते आज मैं अपने घर में कैद हूँ और मुझे इस्लाम को समझने का और उस पर अमल करने का मौका मिला है।