ईद-उल-अधा (बलिदान का पर्व) जानवरों और मवेशियों का वध करने का एक अवसर नहीं है। बल्कि यह कुरबानी के वास्तविक अर्थों की तीन-दिवसीय आध्यात्मिक याद है। जिनमें अल्लाह के प्रति समर्पण और जरूरतमंद तथा भूखे लोगों के लिए गहरी भावनाएं पैदा करना। यह गरीबों और निराश्रितों की स्थिति पर गंभीर चिंतन के लिए एक उपयुक्त समय प्रदान करता है। उनकी देखभाल करने की भावना पैदा करता है, और उनके साथ भाईचारा साझा करता है।
इसका मूल सार हज़रत इब्राहिम / अब्राहम की गहरी भक्ति और ईश्वरीय इच्छा को प्रस्तुत करना है। जिसे मुसलमान ईद-उल-अधा के दौरान मनाते हैं। इस प्रकार, वे खुद को पैगंबर के खातिर कुछ भी बलिदान करने की इच्छा की याद दिलाते हैं। मुसलमान इब्राहिम के प्रति समर्पण की याद में हलाल (अनुमेय) जानवरों की बलि देते हैं और उन गरीबों को वितरित करते हैं जो अपना भोजन नहीं जुटा सकते। हालांकि, पशु बलि इस त्योहार का मूल सार नहीं है। ईश्वर वास्तव में मांस और रक्त का आनंद नहीं लेते हैं। जैसा कि वह कहते है: “उनका मांस अल्लाह तक नहीं पहुंचेगा और न ही उनका खून होगा, लेकिन जो चीज उसके पास पहुंचती है। वह तुमसे पवित्र है।” (कुरआन 22:37)